बैतूलराजनीती

Rajnish Arya Part 2: विज्ञापनदाता और मतदाता में भेद

Rajnish Arya Part 2: हर शाख पर उल्लू, कमल करीबियों की ऐश

Rajnish Arya Part 2: भाजपा नेता रजनीश आर्य के अतिक्रमण को लेकर नगर पालिका का सिस्टम और कलेक्टर के कायदे भी विज्ञापनदाता कमल के करीबी को अतिक्रमण की ऐश करने की इजाजत देते हैं।

Rajnish Arya Part 2हर शाख पर उल्लू बैठा है तो लक्ष्मी पुत्रों पर कृपा रहती है और गरीबों पर बुलडोजर चलते हैं, यहां मतदाता और विज्ञापनदाता के साथ सीधा भेद किया जाता है। यह पूरा मामला दरअसल उस दोहरे चरित्र को उजागर करता है जिसमें लोकतंत्र के सबसे बड़े हिस्सेदार मतदाता तो हाशिए पर धकेले जाते हैं और सत्ता के लिए ऑक्सीजन बने विज्ञापनदाता पूरे तामझाम के साथ सत्ता के सुख भोगते हैं।

Rajnish Arya Part 2: फोटो लगाओ, जमीन दबाओ

आर्य का खेल सिर्फ अतिक्रमण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सत्ता और सिस्टम की मिलीभगत का खुला उदाहरण है। भाजपा के बड़े पदाधिकारियों के साथ अपनी तस्वीरें अखबारों में विज्ञापन के माध्यम से छपवाना उनका सबसे बड़ा हथियार बन चुका है। इन विज्ञापनों के सहारे वह खुद को कमल करीबी साबित करता है और यही नजदीकी उसे सरकारी जमीन पर कब्जा करने का लाइसेंस दिला देती है।

Rajnish Arya Part 2Rajnish Arya Part 2: नगर पालिका हो या जिला प्रशासन, दोनों का तराजू साफ़ झुकता हुआ दिखाई देता है। विज्ञापनों में छपने वाली तस्वीरें उनका सुरक्षा कवच बन जाती हैं, जिससे वह न केवल राजनीतिक संरक्षण पाते हैं बल्कि सरकारी मशीनरी भी उनकी ढाल बनकर खड़ी हो जाती है। यही कारण है कि प्रशासन की नज़रों में मतदाता महज भीड़ भर है और विज्ञापनदाता एक ऐसा वीआईपी ग्राहक जिसे बचाने के लिए हर कानून को बेमानी बना दिया जाता है। 

Rajnish Arya Part 2: गरीब सताओ, करीबी बचाओ

नगर पालिका से लेकर जिला प्रशासन तक का रवैया यह साफ दर्शाता है कि जब बात गरीबों की झोपड़ी हटाने की आती है तो नियम-कायदे तुरंत याद आ जाते हैं, लेकिन जब कोई “विज्ञापनदाता” और “कमल करीबी” होता है तो सारी सख्ती कागज़ों में ही दबी रह जाती है। गरीब मतदाता के हिस्से में सिर्फ बुलडोजर आता है और विज्ञापनदाता के हिस्से में सरकारी ज़मीन की ऐश।

Rajnish Arya Part 2

Rajnish Arya Part 2: एक तरफ गरीब की झोपड़ी तोड़ने के लिए जेसीबी मशीनें पलभर में दौड़ा दी जाती हैं, तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा नेता रजनीश आर्य जैसे “कमल करीबी” नियमों को पैरों तले कुचलकर सरकारी जमीन पर कब्ज़ा कर ऐश करते रहते हैं। लोकतंत्र के इस असमान खेल ने साफ़ कर दिया है कि यहां मत का मूल्य कम और विज्ञापन का महत्व ज्यादा है।

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Sagar Karkare

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