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SC/ST Act: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, SC/ST अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत पर रोक को लेकर दी अहम व्याख्या

SC/ST Act: Supreme Court's historic decision, important explanation given regarding the ban on anticipatory bail under SC/ST Act

SC/ST Act: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पर रोक तब तक लागू नहीं होती जब तक कि आरोपी के खिलाफ अधिनियम के तहत प्रथम दृष्टया मामला सिद्ध न हो जाए। इस फैसले ने कानूनी जगत में एक नई दिशा तय की है, जो उन मामलों के लिए अहम है, जहां बिना ठोस आधार के आरोप लगाए जाते हैं।

SC/ST Act
SC/ST Act (Supreme Court)

SC/ST Act: फैसले की पृष्ठभूमि

SC/ST Act
Justice Manoj Mishra

यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ द्वारा दिया गया। यह मामला मलयालम यूट्यूब न्यूज चैनल ‘मरुनादन मलयाली’ के संपादक शाजन स्कारिया से संबंधित था, जिन्होंने केरल के विधायक पीवी श्रीनिजिन के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी की थी। आरोप था कि श्रीनिजिन, जो जिला खेल परिषद के अध्यक्ष भी हैं, ने खेल छात्रावास का कुप्रबंधन किया था। इस मामले में केरल हाईकोर्ट ने स्कारिया को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में पलट दिया।

SC/ST Act
Justice J B Pardiwala

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SC/ST Act: सुप्रीम कोर्ट का तर्क

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर किसी शिकायत या एफआईआर में उल्लिखित तथ्यों को प्रथम दृष्टया पढ़ने पर अधिनियम के तहत अपराध के लिए आवश्यक तत्व स्पष्ट नहीं होते, तो धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पर रोक का प्रावधान लागू नहीं होता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों को उन सामग्रियों की जांच करने का अधिकार होना चाहिए, जिनके आधार पर शिकायत दर्ज की गई है, खासकर जब कथित आपत्तिजनक सामग्री सोशल मीडिया पर अपलोड की गई हो और सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हो।

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SC/ST Act: प्रथम दृष्टया मामले की जांच का कर्तव्य

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी मामले के प्रथम दृष्टया अस्तित्व का निर्धारण करना न्यायालयों का कर्तव्य है। न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिकायत या एफआईआर में उल्लिखित तथ्यों में अधिनियम के तहत अपराध के लिए आवश्यक तत्व शामिल हैं या नहीं। यदि प्रथम दृष्टया मामला स्थापित नहीं होता, तो अदालतों को आरोपी को अग्रिम जमानत देने से रोका नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि आरोपी के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए और उन्हें केवल ठोस और प्रमाणित आरोपों के आधार पर ही अभियोजन का सामना करना चाहिए।

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SC/ST Act: पिछले फैसलों का संदर्भ

सुप्रीम कोर्ट ने पृथ्वी राज चौहान बनाम भारत संघ के मामले में दिए गए अपने पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि यदि कोई शिकायत अधिनियम के तहत प्रथम दृष्टया मामला स्थापित नहीं करती है, तो धारा 18 और 18-ए का प्रतिबंध लागू नहीं होगा, जिससे अदालतों को आरोपी को अग्रिम जमानत देने की अनुमति मिल जाएगी। इसके अलावा, विलास पांडुरंग पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अधिनियम की धारा 18 सीआरपीसी की धारा 438 को लागू करने पर रोक लगाती है, लेकिन न्यायालयों को यह सत्यापित करना चाहिए कि अधिनियम के तहत प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं।

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SC/ST Act: सामाजिक और कानूनी प्रभाव

इस फैसले का सामाजिक और कानूनी प्रभाव दूरगामी हो सकता है। जहां एक ओर यह फैसला SC/ST अधिनियम के दुरुपयोग को रोकने में मदद करेगा, वहीं दूसरी ओर यह यह सुनिश्चित करेगा कि निर्दोष लोगों को गलत आरोपों के तहत परेशान न किया जाए। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के युग में इस तरह के मामले अधिक सामने आ सकते हैं, जहां शिकायतें बिना ठोस आधार के की जाती हैं।

SC/ST Act
SC/ST Act (Supreme Court)

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्यायिक प्रणाली के भीतर आरोपियों के अधिकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है। इस फैसले से स्पष्ट होता है कि कानून का उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना है, न कि बिना सबूत के किसी को सजा देना। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक न्याय की दिशा में भी एक बड़ा कदम है, जो यह सुनिश्चित करता है कि कानून का दुरुपयोग न हो और निर्दोष लोगों को गलत तरीके से परेशान न किया जाए।

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Sagar Karkare

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